Sunday, February 11, 2024

बुरी आत्मा के वश में लोग क्या करने लगता है

 

नमस्कार आपका स्वागत है। दोस्तों गरुड़ पुराण के प्रेत कल्प में भगवान श्रीकृष्ण ने गरुड़ जी को प्रेत योनि का स्वरूप प्रेत किस प्रकार से मनुष्य को कष्ट देते हैं और प्रेत बाधा होने के क्या लक्षण है। इसके विषय में विस्तार से वर्णन किया है। एक बार गरुड़ जी ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा हे प्रभु मनुष्य को प्रेत योनि क्यों प्राप्त होती है। प्रेत किन प्रकार के मनुष्यों को कष्ट देते हैं,

बुरी आत्मा के वश में लोग क्या करने लगता है

प्रेत ना  तो दिखाई देते हैं और ना ही सुनाई देते हैं तो फिर प्रेतों के बारे में मनुष्य कैसे पता कर सकता है। इस प्रकार से प्रश्न पूछने पर भगवान श्री कृष्ण ने गरुड़ जी को प्रेतों के स्वरूप के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी दी हैं। किस प्रकार से प्रेत मनुष्य को दुख देते हैं और उनके घर परिवार का विनाश कर डालते हैं। 


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प्रेत अच्छे भले मनुष्य पर हावी होकर उसकी बुद्धि को भ्रष्ट कर डालते हैं। उसके सुखी जीवन में अचानक ही दुख के बादल छा जाते। आइए जान लेते हैं गरुड़ पुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने प्रेतों के स्वरूप का कैसे वर्णन किया है। 


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बुरी आत्मा के वश में लोग क्या करने लगता है

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं। मृत्यु के बाद कुछ मनुष्यों को मुक्ति नहीं मिलती है, जिनकी अकाल मृत्यु होती है अथवा जिनकी मृत्यु के पश्चात दाह संस्कार तथा श्राद्ध कर्म नहीं किए जाते हैं, वह प्रेत योनि को प्राप्त हो जाते हैं। प्रेतों का शरीर वायु के जैसा होता है। वे साधारण मनुष्य को दिखाई नहीं देते हैं ।


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किंतु वे वायु की भांति इधर-उधर घूमते रहते हैं और दूसरों के शरीर में प्रवेश करके उन्हें वशीभूत करते हैं। श्री कृष्ण कहते हैं। प्रेत बनकर प्राणी अपने ही परिवार के लोगों को पीड़ित करता है। उन्हें मानसिक कष्ट देने लगता है। जीवित होते हुए वह चाहे कितना ही अच्छा और भला इंसान क्यों न हो। वह अपने प्रियजनों से कितना ही प्रेम क्यों न करता हो किंतु प्रेत बनने के बाद वह बहुत ही अधिक दुष्ट बन जाता है। 


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वह अपने ही प्रिय लोगों को दुख देता है। लेकिन जो मनुष्य भगवान शिव शंकर के मंत्र का जाप करते हैं, उसे प्रेत पीड़ा नहीं दे पाते हैं।  श्री कृष्ण कहते हैं जो देवताओं की निंदा करता है और धर्म के मार्ग पर चलने लगा हो। हमेशा ही झूठ बोलता हो तो प्रेम उस व्यक्ति को अधिक कष्ट देते हैं। 


जिस मनुष्य को प्रेत बाधा हो जाती है, वह अपने ही परिवार के लोगों को कष्ट देता है। सभी पर संशय करता है। अपने माता-पिता को मारता है, पत्नी को पीटता है, संतान का नाश करता है। श्री कृष्ण कहते हैं। प्रेत से पीड़ित व्यक्ति के संतानों की गर्भ में ही मृत्यु हो जाती है। प्रेत उसकी संतान को गर्भ में ही मार डालते हैं। 


यदि ऐसी व्यक्ति की संतान जन्म भी लेती है तो वह नाना प्रकार के कारणों से मर जाती हैं। श्री कृष्ण कहते हैं प्रेत बाधा के कारण व्यक्ति, पशु, हीन और धन ही हो। उसका सारा धन अचानक ही खर्च हो जाता है। वह धीरे धीरे अपना मान सम्मान और संपत्ति को अपने ही हाथों से नष्ट कर डालता है। प्रेत के प्रभाव से उस व्यक्ति की प्रकृति और स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है।


वह मित्रता कम और शत्रुता अधिक करने लगता है। वह अकारण ही दूसरों की निंदा करने लग जाता है। वह सदा ही दूसरों का अहित करने के बारे में सोचने लगता है। उसका स्वभाव अत्यंत चिड़चिड़ा हो जाता है और वह सभी पर संशय करने लगता है। उसे लगता है सब उसे मारने की योजना बना रहे हैं। प्रेत बाधा के कारण ही व्यक्ति नाश्ते प्रवृत्ति का बन जाता है। 


वह बहुत ही अधिक लालची और प्रतिदिन कलह करने वाला हो जाता है। श्री कृष्ण कहते हैं। प्रेत बाधा के कारण ही व्यक्ति अपने माता पिता की हत्या कर डालता है। पुत्र पत्नी को भी मार डालता है। यदि अचानक ही जीवन में दुख आ जाएं तो समझ। लेना चाहिए कि मनुष्य को प्रेत बाधा हुई है। मार्ग में चलते वक्त यदि कोई बवंडर मनुष्य को पीड़ा देता है तो उस व्यक्ति को प्रेत बाधा हो गई है। ऐसा समझना चाहिए। 


यदि अचानक ही शरीर में कोई भयंकर रोग उत्पन्न हो तो यह प्रेत बाधा के कारण ही होता है। यदि किसी व्यक्ति की आजीविका नष्ट हो जाए अथवा उसका धन चोरी हो जाए। उसकी पत्नी का कोई हरण कर ले और यदि उसके वंश का भी विनाश हो जाएं तो यह सभी प्रेत बाधा के कारण ही होता है। प्रेत बाधा के कारण व्यक्ति अचानक ही बहुत अधिक भोजन करने लगता है। 


पत्नी के साथ झगड़ा करने लगता है। प्रेत बाधा के कारण ही घर के पेड़ पौधे सूखने लग जाते हैं जो मनुष्य अपने ही पिता का निवेश करने लगता है। पत्नी पास होने पर भी उसके साथ शारीरिक सुख की प्राप्ति नहीं कर पाता है अथवा नपुंसक बन जाता है और जिसकी बुद्धि अचानक ही क्रूर हो जाती हैं। 


एसा वक्ति प्रेतो के वाश में होता है तो दोस्तों इस प्रकार से गरुड़ पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने प्रेतों के स्वरूप और उनके द्वारा मिलने वाले दुष्परिणामों के बारे में बताया है। 


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