कामदेव और देवी रति की प्रेम कहानी । दोस्तो क्या आप जानते हैं कैसे देवी रति पुत्र की तरह पालने वाले युवक से ही विवाह कर लिया था। दोस्तो पश्चिम के देशों में क्योंपेट और यूनानी देशों में हीरोज को प्रेम का प्रतीक माना जाता है। उसी तरह सनातन संस्कृति में कामदेव को प्रेम और आकर्षण का प्रतीक माना जाता है ।
कामदेव भगवान नारायण और माता लक्ष्मी के पुत्र हैं। उनका विवाह देवी रति से हुवा था । जो प्रेम और आकर्षण की देवी मानी जाती है । दोनो लोगो की प्रेम कहानी अमर प्रेम कहानी है। सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया था। उसके बाद अगले जन्म में कामदेव और उनकी पत्नी देवी रति का मिलन हुवा ।
kamdev devi rati ka milan
सनातन धर्म ग्रंथों में कामदेव को एक बहुत सुंदर युवक के रूप में प्रदर्शित किया गया। जिसके हाथ में धनुष और बाण है। इसकी सवारी तोता को बनाया गया था। शिव महापुराण में कामदेव की कथा का वर्णन हुआ है। पुरानी कथाओं में यह भी कहा जाता है कि ब्राह्मण जी श्रिस्टी के विस्तार के सृष्टि के विस्तार की कामना से ध्यान मग्न थे।
उसी समय उनके अंश से एक तेजस्वी पुत्र कामदेव उत्पन्न हुआ। वह पुत्र कहने लगा कि मेरे लिए क्या अज्ञा है । ब्रह्मा जी ने कहा सृष्टि उत्पन्न करने के लिए प्रजापति यों को उत्पन्न किया था, परंतु वे सृष्टि रचना में सफल नहीं हुए। इसलिए यह कार्य अब तुम्हें मैं सोपता हूं कि यह बात सुने बिना वह कामदेव वहा से चले गए ।
जिससे नाराज होकर ब्रह्माजी ने कामदेव को श्राप दिया कि तुमने आज्ञा का पालन नहीं किया है। इसलिए तुम्हारा जल्द ही विनाश हो जाएगा। ब्रह्मा जी के श्राफ के कारण कामदेव है। भाभित हो गए और हाथ जोड़कर क्षमा मांग काफी देर तक कामदेव की प्रार्थना के बाद ब्रह्मा जी आखिरकार प्रसन्न हुए और उन्होने कामदेव को रहने के लिए 12 स्थान दिए ।
ब्रह्मा जी ने कहा तुम्हारा निवास स्थान स्त्रिओ के केश रासी, जंघा , नाभी , अधर , कोयल , की कूक , चांदनी , वार्षकाल वैशाख और छेत्र महिना होगा । इसके बाद ब्रह्मा जी ने कामदेव को पुष्प का धनुष और मारण संबंध जर्मन शोषण तथा और मदन नाम के पांच बार भी दिए। ब्रह्मा जी से मिले वरदान के बाद कामदेव तीनों लोकों में भ्रमण करने लगे और भूत प्रेत गंधर्व यक्ष सभी को अपने काम में वशीभूत कर लिया।
कामदेव एक समय कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर से मिलने चले गए। भगवान शंकर तपस्या में लीन थे। तभी कामदेव ने सूक्ष्म रूप धारण कर काम के क्षेत्र से भगवान शंकर के शरीर में प्रवेश किया। इससे भगवान शंकर का शरीर चंचल हो उठा। भगवान शंकर ने देखा उनके शरीर में कामदेव प्रवेश कर गया है। जब कामदेव को पता चला तो वह उसी क्षण भगवान शंकर के शरीर से बाहर आ गए।
फिर भगवान शंकर पर उन्होंने मोहन नामक बाण छोड़ा जो शंकर भगवान के हृदय पर जा गिरा। इससे क्रोधित होकर कामदेव को अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर दिया। कामदेव की पत्नि रति को यह सब पता चला तो विलाप करते हुए तभी आकाशवाणी हुई जिसमें रति को फैला अपना करने और भगवान शंकर की प्रार्थना करने को कहा गया।
देवी रति ने भक्ति पूर्वक भगवान शंकर की पूजा और आराधना की देवी रति की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने कहा, कामदेव ने मेरे मन को विचलित किया था। इसी कारण मैंने इसे भस्म कर दिया। अब अगर यह महाकाल वन में जाकर प्रार्थना करेंगे। तो उनका उद्धार होगा। कामदेव भगवान शंकर के अनुसार महाकाल वन में चले गए और उन्होंने पूर्ण भक्ति भाव से शिवलिंग स्थापना की और घोर तपस्या करने लगे।
कुछ समय बाद कामदेव से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने कहा कि तुम अन्न शरीर के बिना रह कर भी सारे कार्य करने में समर्थ रहोगे और द्वापर युग में कृष्ण अवतार के समय भगवान कृष्ण और रुक्मणी के पुत्र के रूप में जन्म लोगे और तुम्हारा नाम प्रद्युम होगा।
भगवान शंकर के कहे अनुसार द्वापर युग में श्री कृष्ण और रुक्मणी को प्रद्युम्न नामक एक पुत्र हुआ। जो कामदेव का ही अवतार था। जन्म के समय राक्षस समरा सुर प्रद्युम्न का अपहरण कर लिया और समुद्र में फेंक दिया, जिसे एक मछली ने निकाल लिया और यह मछली मछुआरे के द्वारा पकड़े जाने के बाद सब असुर के घर पहुंच गई। जब देवी रति को इस बारे में सूचना मिली तो वह रसोई में काम करने वाली स्त्री के रूप धारण कर रसोई घर में पहुंच गई और उस मछली को वही काटा और उसमें निकले। बच्चे को मां के समान पालकर बडा किया
जब बच्चा बड़ा हुआ तो देवी रति ने पूर्व जन्म की सारी बातें बताइए। बड़े होकर प्रद्युम्न और समरा सुर नामक राक्षस का वध किया। जिस रति ने उसे मां के समान पालकर बड़ा किया था उससे विवाह कर उसके साथ द्वारका वापस आ गए। यही कामदेव और देवी रति की प्रेम कहानी और भी आपके मन में सवाल आते हैं।तो जरुर बताए
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