Saturday, July 29, 2023

कामदेव का मोहिनी मंत्र । मोहिनी आकर्षण मंत्र

 

हिंदू धर्म में कामदेव, कामसूत्र , काम शास्त्र और चार पुरुष अर्थों में से एक काम की बहुत चर्चा होती है। खजुराहो में कामसूत्र से संबंधित कई मूर्तियां है। अब सवाल यह उठता है कि क्या काम का अर्थ सेक्सी होता है नहीं काम का अर्थ होता है। कार्य कामना और काम इच्छा से बस सारे कार्य जिससे जीवन आनंद, दायक, सुखी, शुभ और सुंदर बनता है। 

कामदेव का मोहिनी मंत्र । मोहिनी आकर्षण मंत्र


काम के अंतर्गत ही आते हैं धर्म, अर्थ काम और मोक्ष , आपने कामदेव के बारे में सुना या पढ़ा होगा। पौराणिक काल की कई कहानियों में कामदेव का उल्लेख मिलता है जितने भी कहानियों में कामदेव के बारे में जहां कहीं भी लेख हुआ है, उन्हें पढ़कर एक बात तो समझ में आती है वो ये कि कामदेव का संबंध प्रेम और काम इच्छा से है । 


लेकिन असल में कामदेव है। कौन क्या वह एक काल्पनिक भाग है जो देव और ऋषि मुनियों को सताता रहता था या फिर वह भी किसी देवता की तरह एक देवता थे। आइए जानते हैं कामदेव के बारे में रहस्य


कामदेव का मोहिनी मंत्र । मोहिनी आकर्षण मंत्र

कामदेव प्रेम के देवता जिस तरह पश्चिमी देशों में क्यों पिट और यूनानी देशों में हीरोस को प्रेम का प्रतीक माना जाता है, उसी तरह हिंदू धर्म ग्रंथों में कामदेव को प्रेम और आकर्षण का देवता कहा जाता है कामदेव का धनुष उनका धनिष् मिठास से भरे गन्ने का बना होता है जिसमें मधुमक्खियों के शहद की रस्सी लगी है। उनके धनुष का बान अशोक के पेड़ के महत्व फूलों के अलावा सफेद नीले कमल , चमेली और आम के पेड़ पर लगने वाले फूलों से बने होते हैं। 


कामदेव के पास मुख्यतः पांच प्रकार के बाढ़ है जो इस प्रकार है संभल संभल शोषण मदन यानी मन मन कहां होता है कामदेव का वाद मुद्गल पुराण के अनुसार कामदेव का बास सुंदर फूल गीत परागकण फूलों का रस पक्षियों की मीठी आवाज। सुंदर बाग बगीचा, वसंत, ऋतु, चंदन कामवासना में लिप्त मनुष्य की संगति छुपे अंग सुहानी और बंद हवा ट्रेनें के सुंदर स्थान और सुंदर आभूषण धारण किए शहरों में रहता है। इसके अलावा कामदेव स्त्रियों के शरीर में भी वास करते हैं। खास तौर पर प्रयोग। कामदेव के पास पास 5 प्रकार के बाण है । जो इस प्रकार है । 


  1. मारण  

  2. स्वत्वभाम 

  3. जृंभम 

  4. शोषण 

  5. उम्मादन 

  6. मनमंथ 


कामदेव का वास कहा होता है 

मुग्दल पुराण के अनुशार कामदेव का वास योबन, स्त्री , सुन्दर फूल , गीत , फूलो का रस , पक्षी का मीठी आवाज , सुन्दर बाग बगीचा वसंत ऋतु , चंदन , कामवासना के लुफ्त मनुष्य के शरीर में , छुपे अंग , सुहानी और मंद हवा रहने के सुन्दर अस्थान , आकर्षक वस्त्र , और सुन्दर आभूषण किए हुए शरीरों में रहता है । 


इसके अलावा कामदेव स्त्रियों के मन में भी वाश करता है । खाश तोर पर स्त्रीओ के नयन , ललाट , मुहे और होठों पर इनका प्रभाव काफी रहता है । 


भगवान ब्रह्मा ने कामदेव का क्या दिया वरदान 

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय ब्रह्मा जी प्रजा विधी की कामना से ध्यान मग्न थे। उसी समय उनके एंड से तेजस्वी पुत्र काम उत्पन्न हुआ और कहने लगा कि मेरे लिए क्या आ गया है तब ब्रह्माजी बोले कि मैंने सृष्टि उत्पन्न करने के लिए प्रजापतियों को उत्पन्न किया था। किंतु वे सृष्टि रचना में समर्थ नहीं हुए । 


इसलिए मैं तुम्हें इस कार्य की आज्ञा देता हूं। यह सुन कामदेव वहां से विदा होकर अदृश्य हो गए। यह देख ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए और उसे श्राप दे दिया कि तुमने मेरा वचन नहीं माना। इसीलिए तुम्हारा जल्दी नाश हो जाएगा। श्राप सुनकर कामदेव भयभीत हो गए और हाथ जोड़कर ब्रह्मा जी के समक्ष क्षमा मांगने लगे।


कामदेव की अनुनय विनय से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें रहने के लिए 12 स्थान देता हूं जो है स्त्रियो के कटाक्ष के राशी जंघा , वक्ष , नाभि , कोयल की कूक ,  चांदनी, वर्षा काल ,  चेत्र और वैशाख महीना इस प्रकार कहकर ब्रह्मा जी ने कामदेव को पुष्प का धनुष और पांच बाण  देकर विदा कर दिया ।


ब्रह्मा जी से मिले वरदान की सहायता से काम देव तीनों लोकों में भ्रमण करने लगे और भूत पिशाच गंधर्व अक्ष सभी को काम ने अपने वशीभूत कर लिया। फिर मछली का ध्वज लगाकर कामदेव अपनी पत्नी रति के साथ संसार के सभी प्राणियों को अपने वशीभूत करने लगे। इसी क्रम में वे शिव जी के पास पहुंचे। 


भगवान शिव तपस्या में लीन थे। तभी कामदेव छोटे से जंतु का सूक्ष्म रूप लेकर करण के क्षेत्र से भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर गये। इससे शिवजी का मन चंचल हो गया। उन्होंने विचार धारण कर चित्र में देखा कि कामदेव उनके शरीर में स्थित है। इतने में ही इच्छा शरीर धारण करने वाले कामदेव भगवान शिव के शरीर से बाहर आ गए। 


और आम के एक वृक्ष के नीचे जाकर खड़े हो गए। फिर उन्होंने शिवजी पर मोहन नामक बाण छोड़ा जो शिवजी के ह्रदय पर जाकर लगा। इससे क्रोधित हो। शिव जी ने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से उन्हें भस्म कर दिया। कामदेव को जलता देख उनकी पत्नी रति विलाप करने लगी। तभी आकाशवाणी हुई जिसमें रितिक और रूदन ना करने पर भगवान शिव की आराधना करने को कहा गया ।


फिर रति ने श्रद्धा पूर्वक भगवान शंकर की प्रार्थना की प्रति की प्रार्थना से प्रसन्न हो। शिव जी ने कहा कि कामदेव ने मेरे मन को विचलित किया था इसलिए मैंने इन्हें भस्म कर दिया। अब अगर यह अननक रुप में महाकाल बन में जाकर शिवलिंग की आराधना करेंगे तो इनका उद्धार होगा। और तब कामदेव महाकाल वन में आए और उन्होंने पूर्ण भक्ति भाव से शिवलिंग की उपासना की। 


उपासना के फल स्वरुप शिव जी ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम अनंक शरीर के बिन रह कर भी समर्थ रहोगे। कृष्ण अवतार के समय तुम रुक्मणी के गर्भ से जन्म लोगे और तुम्हारा नाम प्रद्युमन होगा। 



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