Thursday, February 2, 2023

भारत में विवाह प्रथा कब शुरू हुई?

 

दर्शकों क्या आप जानते हैं कि विवाह करने की परंपरा का आरंभ कैसे हुआ था तो आइए आज की इस पोस्ट में हम इस विषय के बारे में विस्तार से जानते हैं। 

भारत में विवाह प्रथा कब शुरू हुई?


भारत में विवाह प्रथा कब शुरू हुई? 

हिंदू धर्म शास्त्रों में हमारे 16 संस्कार बताए गए हैं। इन संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण विवाह संस्कार है। शादी को व्यक्ति का दूसरा जन्म भी माना जाता है क्योंकि इसके बाद वर वधू सहित दोनों के परिवारों का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। इसलिए विवाह के संबंध में कई महत्वपूर्ण सावधानियां रखना जरूरी है। 


विवाह के बाद वर वधू का जीवन सुखी और खुशियों से भरा हो। यही कामना की जाती है। विवाह यानी के वी और वहां से मिलकर बनता है तथा इसका शाब्दिक अर्थ है। विशेष रूप उत्तरदायित्व का वर्णन करना है पानी ग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है । 


जिसे विशेष परिस्थिति में थोड़ा भी जा सकता है। परंतु हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच जन्म जन्मांतर ओं का संबंध होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे लेकर और द्रोह तारीख को साक्षी मानकर दो तन मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बिच शारीरिक संबंध से अधिक आत्मिक संबंध होता है और इस संबंध को अत्यंत पवित्र माना गया है। 


विवाह संस्कार हिंदू धर्म संस्कारों में प्रदर्शित संस्कार है। पढ़ाई समाप्त होने के पश्चात विवाह करके गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करना होता है। यह संस्कार पितृ ऋण से उऋण होने के लिए किया जाता है। मनुष्य जन्म से 3 ऋण से बंद कर जन्म लेता है और सृजन इनमें से अग्निहोत्री अर्थात के अधिकारियों से विवरण विधायक शास्त्रों के अध्ययन से ऋषि और पत्नी से पुत्र की उत्पत्ति आदि के द्वारा पितृ ऋण से उऋण हुआ जाता है। 


हिंदू धर्म में सत्र ग्रह की परिवार निर्माण की जिम्मेदारी उठाने की योग्य शारीरिक मानसिक परिपक्वता आ जानें पर युवक-युवतियों का विवाह संस्कार कराया जाता है। भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह कोई शारीरिक या सामाजिक अनुबंध मात्र नहीं है। यह दंपत्ति को एक श्रेष्ठ आत्मिक साधना का भी रूप दिया गया है। 


इसलिए कहा गया है धन्य गृहस्थाश्रम सृष्टि के आरंभ में विवाह जैसी कोई प्रथा नहीं थी। कोई भी पुरुष किसी भी स्त्री से यौन संबंध बनाकर संतान उत्पन्न कर सकता था। पिता का ज्ञान ना होने से मात्र पक्ष को ही प्रधान साथी तथा संतान का परिचय माता से ही दिया जाता था। यह व्यवस्था वैदिक काल तक चलती रही इस व्यवस्था को परवर्ती काल में चुनौती दी । 


तथा इसे वास्तविक संबंध मानते हुए नए व्यवहारिक नियम बनाए गए। ऋषि वेद केतु का एक संदर्भ वैदिक साहित्य में आया है कि उन्होंने मर्यादा की रक्षा के लिए विवाह प्रणाली की स्थापना की और तभी से कुटुम व्यवस्था का श्रीगणेश हुआ। आजकल बहुत प्रचलित और वेद मंत्रों द्वारा संपन्न होने वाले विवाह को ब्रह्म विवाह कहते हैं। 


अर्थात भह्म विवाह से उत्पन्न पुत्र अपने कुल की 21 पीढ़ियों को पाप मुक्त करता है। 10 अपने आगे की 10 अपने से पीछे की और एक स्वयं अपनी । भविष्य पुराण में लिखा है कि जो लड़की को अलंकृत कर ब्रह्म विधी से विश करते हैं, वे निश्चय ही अपने साथ पूर्वजों और साथ वंशजों को नर्क भोज से बचा लेते हैं ।


उम्मीद करता हूं कि ये जानकारी आपको अच्छा लगा होगा । और आपने ये समझ गया होगा । की हिंदू धर्म में शादी क्यों किया जाता है। आज के लिए इतना ही हमारे ब्लॉग के साथ अंत तक बने रहने के लिए आप सभी लोगो को दिल से धन्यवाद ,,,,,,,,,,,,,,,,,,



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