Sunday, January 22, 2023

ऋषि दुर्वासा की पूरी कहानी

 

दशकों दुर्वासा नाम तो आपने सुना ही होगा। इसका अर्थ है जिसके साथ ना रहा जा सके। प्राचीन काल में ऋषि दुर्वासा का नाम सुनते ही मन में श्राप का भय पैदा हो जाता था कि कहीं वे कोई श्राप न दे दे। उनका खौफ तो देवों में भी रहता था लेकिन दुर्वासा ऋषि के तो हजारों शिष्य थे जो उनके साथ ही रहते थे। दुर्वासा ऋषि कब जन्मे कब पले बढ़े और अब कहां है दुर्वासा ऋषि यह तो किसी को भी पता नहीं होगा। आइए जानते हैं आज के पोस्ट में उनके जन्म और नामकरण की कथा के बारे में । 

ऋषि दुर्वासा की पूरी कहानी

ऋषि दुर्वासा की पूरी कहानी

ब्रह्मांड पुराण के अनुसार एक बार शिव और पार्वती में तीखी बहस हो गई। गुस्से में आए पार्वती माने शिवजी से कह दिया कि आपका यह क्रोधी स्वभाव आप को साथ ना रहने लायक बनाता है। तब शिवजी ने अपने क्रोध को अत्रि ऋषि की पत्नी अनसूया के गर्भ में स्थापित कर दिया और इसी के चलते अत्री और अनसूया के पुत्र का जन्म हुआ । 


जिनका नाम दुर्वासा रखा गया। दुर्वासा ऋषि की शिक्षा पिता के सानिध्य में ही हुई थी लेकिन जल्द ही वह तपस्वी स्वभाव के चलते माता पिता को छोड़ वन में चले गए थी। तब उनके पास एक ऋषि अपनी बेटी के साथ दुर्वासा के पास आए और उनसे अपनी बेटी का परिग्रहण करवा दिया। ऋषि ने दुर्वासा से अपनी बेटी के सब गुण कहर । 


पर साथ में बताया कि उसका 1 अवगुण है जो सब पे भारी था । ऋषि की लड़की का नाम था कंडली और उसमें एक ही अवगुण था कि वह कलह करनी थी। दुर्वासा के उग्र स्वभाव को जान ऋषि ने दुर्वासा से उसके सभी अपराध माफ करने की अपील की। 


ऐसे में दुर्वासा ने कहा कि मैं अपनी पत्नी के 100 अपराध क्षमा कर लूंगा, लेकिन उसके बाद नहीं फिर दोनों की शादी हो गई और ब्रह्मचारी दुर्वासा ग्रहस्ती में पड़ गए। लेकिन अपने स्वभाव के चलते कदली बात बात पर पति से कलह करती । और अपने वरदान के चलते ऋषि दुर्वासा को क्रोध सहना पड़ा। 


क्या दुर्वासा ने अपनी पत्नी को मार दिया 

जिन दुर्वासा के क्रोध से सृष्टि के जीव कप थे ।  । वही तब अपनी पत्नी के क्रोध से कांपते थे। कांपते इसलिए थे कि उन्होंने वरदान दे दिया था। और वो कुछ नहीं कर सकती थी। आलम यह था कि दुर्वासा ने पत्नी की 100 से ज्यादा गलतियां माफ की, लेकिन एक दिन उनका पारा असहनीय हो गया और उन्होंने तब अपनी ही पत्नी कहली को भस्म कर दिया  । 


तभी उनके ससुर आ पहुंचे और दुर्वासा की यह करनी देख । उन्होंने उन्हें श्राप दे दिया और कहा कि यदि तुम से सहन नहीं हुई थी तो उसका त्याग कर देना चाहिए था किंतु उसे मारा क्यों इस गलती के चलते दुर्वासा को बेइज्जत होना पड़ा था। उस घटना के दिल से ही करली की राख करली जाती बन गई और आज भी वह जाती मौजूद है। 


दुर्वशा ऋषि ने दोबारा शादी किया 

इसके अलावा श्री कृष्ण की बहन आनी यशोदा की बेटी जिसे कंश ने मारना चाहता था । उसे बाद में वासुदेव देवकी ने पाला और ऋषि दुर्वासा से ही उनका तब विवाह हुआ था। उसका नाम था। एक विदिशा यह एक अद्भुत उसका नाम था एक विंशा ये एक अद्भुत कथा है । 


दुर्वासा ने भी बनवास काटा था 

कर्ण से प्रेरित दुर्योधन ने योजनाबद्ध तरीके से दुर्वासा ऋषि और उनके हजारों शीर्ष को वनवासी पांडवों के पास तब भेजा जब वह भोजन कर चुके थे। हालांकि पांडू के पास अक्षय पात्र था, लेकिन जब तक द्रौपदी ना खा ले तब तक ही उसमें भोजन रहता था और द्रौपदी तक खा चुकी थी। ऐसे में दुर्वासा पहुंच गए और स्नान के लिए नदी किनारे गए।


तो द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को याद किया। श्रीकृष्ण उस समय भोजन की थाली पर बैठे थे और थाली छोड़कर अपने परम भक्त की मदद को पहुंच गए। श्री कृष्ण ने तब अक्षय पात्र में बचे तिनके को खाकर अपनी और समस्त संसार की भूख शांत कर दी जिसमें दुर्वासा जी भी शामिल थे। 


क्या दुर्वासा ने श्री कृष्ण को श्राप दिया था 

लेकिन दुर्वासा जान गए थे। श्रीकृष्ण की यह करनी और तब दुर्वासा ने श्री कृष्ण से कहा कि शास्त्रों का लेख है कि परोसी हुई थाली नहीं छोड़नी चाहिए और किसी का झूठा भी नहीं खाना चाहिए और आपने ऐसा किया है इसलिए आप को मेरा श्राप है कि भोजन के लिए लड़ते हुए ही आपका वंश नाश हो जाएगा और ऐसा ही हुआ था लेकिन श्री कृष्णा  अशरीरी गोलोक गए थे। हालांकि कई जगह उन्हें देह त्याग की भी बात की गई है। इसीलिए परोसी हुई थी। खाली ना छोड़े। और किसी का जूठा भी ना खाए ।।


तो दोस्तो उम्मीद करता हू कि ये जानकारी आपको अच्छा लगा होगा । हमारे ब्लॉग के साथ अंत तक बने रहने के लिए आप सभी लोगो को दिल से धन्यवाद ,,,,,,,,,,,



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