Sunday, January 22, 2023

तुलसी और शालिग्राम का विवाह कैसे हुआ?

 

नमस्कार दोस्तों स्वागत है। आपका हमारे ब्लॉग में ।  आज की कहानी है। तुलसी माता जी का जन्म और विवाह । पुराणिक कथा के मुताबिक भगवान शिव के गणेश और कार्तिकेय के अलावा एक और पुत्र थे, जिनका नाम था। जलंधर एक अन्य कथा के अनुसार एक बार शिव ने अपने तेज को समुद्र में फेंक किया था। उस तेज से एक महान तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। 

तुलसी और शालिग्राम का विवाह कैसे हुआ?

जालंधर का जन्म कैसे हुआ 

यह बालक आगे चलकर जालंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना। वह खुद को सभी देवताओं से ज्यादा शक्तिशाली समझता था और देव गणों को परेशान करता था। तुसली पूर्व जनम में एक लड़की थी जिसका नाम वृंदा था। राक्षस कुल में जननी यह बच्चे बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी । जब भगवान विष्णु की परम भक्त वृंदा बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में ही दानव राज जालंधर से संपन्न हुआ। 


विंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी। वह सदा अपने पति की सेवा किया करती थी। जालंधर द्वारा बार-बार देवताओं को परेशान करने की वजह से त्रिदेवो ने उसके वध की योजना बनाएं। देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जालंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा कि स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं आप जब तक युद्ध में रहेंगे मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करूंगी। 


तुलसी की कहानी 

जब तक आप लौट के नहीं आते। मैं अपना संकल्प नहीं छोडूंगी। जालंधर युद्ध में चला गया और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उसके व्रत के प्रभाव से देवता भी जालंधर को नहीं हरा सके। वृंदा के पूजा अनुष्ठान के चलते कोई उसे नहीं मार पा रहा था। काफी दिन तक संघर्ष चलता रहा। सभी के प्रयासों के बाद भी जब जालंधर परास्त नहीं हुआ और सारे देवता हारने लगे तो इस समस्या का समाधान के लिए सभी देवगण भगवान विष्णु के पास पहुंचे। 


सभी ने भगवान से मदद मांगने के लिए प्रार्थना की। भगवान श्री हरि ने देवताओं की इस विफलता पर विचार किया कि आखिर यह असुर मारा क्यों नहीं जा रहा । तब पता चला कि देवता कि तेजस्वी पत्नी वृंदा का तपोबल ही उसकी मृत्यु में अवरोधक बना हुआ है। जब तक वृंदा का तपोबल खत्म नहीं होगा, तब तक राक्षस को हराया नहीं जा सकता। 


लेकिन इसके साथ वृंदावन की परम भक्त भी थी। तब भगवान श्री हरि विष्णु जी बोले कि वृंदा मेरी परम भक्त है। मैं उससे छल कपट नहीं कर सकता। इस पर देवता बोले कि भगवान अगर ऐसा है तो फिर दूसरा कोई उपाय हो तो बताएं, लेकिन हमारी मदद जरूर करें। कोई दूसरा उपाय ना पाकर भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण किया। इस कार्य में प्रभु को छल और कपट दोनों का प्रयोग करना ही पड़ा। 


जब जालंधर का रूप धारण कर भगवान श्री हरि तेजस्विनी वृंदा के महल में पहुंचे तो अपने पति को देखकर पूजा का संकल्प छोड़ पति के चरण छू लिए। जैसे ही वृंदा का पूजा का संकल्प टूटा उसी समय देवताओं ने जालंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया। जैसे ही वृंदा को यह पता चला कि उसके पति युद्ध में मारे गए हैं। वृंदा ने बहुत ही आश्चर्य से भगवान विष्णु की तरफ देखा जिन्होंने जालंधर का रूप धारण कर रखा था। 


भगवान विष्णु अपने असली अवतार में आ गए किंतु भगवान कुछ भी बोल ना सके। जब वृंदा को भगवान से छल पूर्वक अपने तब को समाप्त करने का पता चला तो वह बहुत ही दुखी हुई और अत्यंत क्रोधित हुए। वृंदा ने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया। अपने भक्तों के श्राप को  भगवान विष्णु स्वीकार किया और शालिग्राम पत्थर बन गए। 


तुलसी और शालिग्राम का विवाह कैसे हुआ? 

सृष्टि के पालन करता के पत्थर बन जाने से ब्रह्मांड में असंतुलन की स्थिति हो गई। सभी देवताओं में हाहाकार मच गया। यह देखकर सभी देवी देवताओं ने वृंदा से प्रार्थना करते हुए कहा कि वह भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर दे । देवताओं की प्रार्थना के बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया। पश्चाताप के लिए भगवान विष्णु ने खुद का एक पत्थर रूप प्रकट किया । 


इस पत्थर को शालिग्राम का नाम दिया गया। उन्होंने वृंदा से कहा कि है वृंदा तुम वृक्ष बनकर हमेशा मुझे छाया प्रदान करना। इतना सुनते ही वृंदा अपने पति के रूप में सती हो गई और उनके सती होने के बाद उसी राक से एक पौधा निकला। भगवान विष्णु ने स्वयं इस पौधे का नाम तुलसी रखा। इस तरह बृंदास तुलसी के रूप में पृथ्वी पर उत्पन्न हुई। 


भगवान विष्णु ने अपना प्रायश्चित जारी रखा और कहा कि मैं शालिग्राम यानी पत्थर के रूप में ही रहूंगा जैसे शालिग्राम के नाम से तुलसी के साथ ही पूजा जाएगा। भगवान विष्णु ने तुलसी को सबसे ऊंचा स्थान दिया और कहां मैं तुलसी के बिना भोजन नहीं करूंगा। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि किसी भी शुभ कार्य में तुलसी जी के भोग से पहले मैं कुछ भी स्वीकार नहीं करूंगा। 


तभी से ही तुलसी की पूजा होने लगी। इसके बाद सभी देवी देवताओं ने वृंदा के सती होने का मान रखा और उसका विवाह पत्थर रूप शालिग्राम के साथ करवाया। इस प्रकार कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी शालिग्राम का विवाह संपन्न हुआ। जिस दिन तुलसी विवाह हुआ। उस दिन देवउठनी एकादशी थी। इसलिए हर साल देवउठनी के दिन ही तुलसी विवाह किया जानें लगा ।  


इस विवाह में तुलसी दुल्हन और शालिग्राम दूल्हा बनते हैं। दोस्तों आपको बता दें कि जिस घर में तुलसी होती है, वहां यम के दूत भी नहीं जा सकते। मृत्यू के समय जिस से प्राण मंजरी रहे तुलसी और गंगाजल मुख में रख कर निकल जाते हैं। वह पापों से मुक्त होकर बैकुंठ धाम को प्राप्त होता है जो मनुष्य तुलसी वालों की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है। उसके पितर मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं। 


दोस्तों यह थी तुलसी जन्म और विवाह की कथा और कहानी हमें उम्मीद है कि आपको यह तुलसी जन्म और विवाह की कहानी और कथा पसंद आई होगी। आज के लिए इतना ही हमारे ब्लॉग के साथ अंत तक बने रहने के लिए आप सभी लोगो को दिल से धन्यवाद ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,



No comments:
Write comment