Thursday, May 11, 2023

Karma Puja kab hai । 2022 me karma kab hai ?

 

karma Jyanti 2023: मां कर्मा देवी सेवा, त्याग, भक्ति और समर्पण की देवी हैं। परम साध्वी भक्ति शिरोमणी मां कर्मादेवी सर्व साहू तेली समाज की आराध्य देवी मानी जाती हैं। कर्मा देवी का जन्म संवत् 1073 सन 1017 ई0 में पाप मोचनी एकादशी के दिन हुआ था। वहीं साल 2022 में मां कर्मादेवी की जयंती 28 मार्च 2022 पड़ रही है।

Karma Puja kab hai । 2022 me karma kab hai ?

karma Jyanti 2022: मां कर्मा देवी सेवा, त्याग, भक्ति और समर्पण की देवी हैं। परम साध्वी भक्ति शिरोमणी मां कर्मादेवी सर्व साहू तेली समाज की आराध्य देवी मानी जाती हैं। कर्मा देवी का जन्म संवत् 1073 सन 1017 ई0 में पाप मोचनी एकादशी के दिन हुआ था। वहीं साल 2022 में मां कर्मादेवी की जयंती 28 मार्च 2022 पड़ रही है।


Karma Puja kab hai । 2022 me karma kab hai ? 

मां कर्मा देवी कोई काल्पनिक पात्र नहीं है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के झांसी शहर में चैत्र माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन यानि पाप मोचनी एकादशी पर प्रसिद्ध व्यापारी श्री राम साहू जी के घर में हुआ था। मां कर्मादेवी बाथरी वंश की थी। श्री राम साहू की बेटी कर्मादेवी से साहू समाज का वंश और छोटी बेटी धर्माबाई से राठौर समाज का वंश चला आ रहा है। इसलिए साहू और राठौर दोनों तैलिकवंशीय समुदाय के वैश्य समाज है।


मां कर्मादेवी का विवाह मध्य प्रदेश के जिला शिवपुरी की तहसील मुख्यालय नरवर के निवासी पद्मा जी साहू के साथ हुआ था। उस समय नरवरगढ़ एक स्वतंत्र जिला था। परम साध्वी भक्त शिरोमणी मां कर्मादेवी की गौरव गाथा जन-जन के मानस में श्रद्धा भक्ति के भाव से सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है।


कर्मादेवी को बाल्यावस्था से ही धार्मिक कथा-कहानियां सुनने की अधिक रुचि थी। उनका यह भक्ति भाव निर्वाध गति से बढ़ता गया। कर्मा जी के विवाह योग्य हो जाने पर उसका सम्बंध नरवर ग्राम के प्रतिष्ठित व्यापारी के पुत्र के साथ कर दिया गया। पति सेवा के बाद कर्माबाई को जितना भी समय मिलता था वह समय भगवान श्रीकृष्ण के भजन-पूजन ध्यान आदि में लगाती थी।


कर्मा देवी सामाजिक और धार्मिक कार्यो में तन, मन, धन और लगन से करती थीं। इन सभी करणों से कर्माबाई का यशगान बड़ी तेजी से फेलने लगा। कर्मा देवी जगन्नाथपुरी में समुद्र के किनारे ही रहकर बहुत समय तक अपने आराध्य बालकृष्ण को खिचड़ी का भोग अपने हांथों से खिलाती रहीं और उनकी बाल लीलाओं का आनन्द साक्षात मां यशोदा की तरह लेती रहीं।


आराध्य मां कर्माबाई के जीवन से आत्मबल, निर्भीकता, साहस, पुरूषार्थ, समानता और राष्ट्रभावना की शिक्षा मिलती है। वे अन्याय के आगे कभी झुकी नहीं। उन्होंने संसार के हर दुःख-सुख को स्वीकारा और डट कर उसका मुकाबला किया। गृहस्थ जीवन पूर्ण सम्पन्नता के साथ यापन कर नारी जाति का सम्मान बढ़ाया। अपनी भक्ति से साक्षात् श्रीकृष्ण के दर्शन किए और अपनी गोद में लेकर बालकृष्ण को अपने हाथों खिचड़ी खिलाई।


करमा पर्व सितंबर दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाने वाला करमा पर्व भाई-बहन के आपसी सद्भाव में और प्रेम का प्रतीक है। 


झारखंड में करमा पूजा कब है 2022

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Karma Dharma Ekadashi 2022


साथ ही यह त्यौहार कृषि और प्रकृति से भी अच्छी फसल के लिए प्रकृति की आराधना की जाती है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं और सम्मान का भी पर्व करमा प्रकृति को बचाने उसे समृद्ध करने और जिंदगी को प्रवाह देने वाला पर्व का इंतजार कुंवारी होती है। 


बेसब्री से करती है, इन दिनों तक चलता है। इसमें पहले दिन महिलाएं व कुंवारी। सैयद करती हैं, दूसरे दिन निर्जल उपवास किया जाता है। 


इसी दिन पूजा आयोजित होती है। शाम को आंगन में कर्म पौधे की डाली गाड़ कर फल-फूल आदि से पूजा की जाती है।


इस दौरान महिलाएं कर्म डाली के चारों ओर घूम घूम कर आए। क्या लेकर बहनों से सवाल करते हैं कि करमा पर्व किसके लिए करती हो तो वह नहीं जवाब देती हैं।


भाइयों की मंगल कामना के लिए बाद में भाई तेरे से मारता है और फिर महिलाएं युवतियां फलाहार करती है। अगले दिन सुबह में कर्म की डाल को पोखर में विसर्जित कर दिया जाता है। 


जाती है उठा उठा कर हमसे नहीं अब गंगा स्नान हो बनाने की विधि पुरानी कथा कर्मा और धर्मा नामक दो भाइयों से जुड़ी है। 


कहा जाता है कि दोनों भाइयों ने अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान को दांव पर लगा दिया था। दोनों भाई काफी करीब थे।


उनकी बहन बचपन से ही भगवान से उनकी सुख समृद्धि की कामना करती थी बल्कि तब के कारण ही दोनों भाइयों के घर में सुख समृद्धि भाइयों ने भी दुश्मनों से अपनी बहन की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।


इस पर्व की परंपरा यही से मनाने की शुरुआत हुई थी। त्योहार से जुड़ी दोनों भाइयों के संबंध में एक और कहानी है। कहा जाता है कि कर्मा और धर्मा दो भाई थे। दोनों भक्ति और दयावान कर्मा का विवाह हो गया। उसकी पत्नी  में और दूसरों को परेशान करने वाली थी।


यहां तक कि वह धरती मां कुमारी बता देती थी। मामा को बहुत दुख हुआ। धरती मां की पीड़ा से बहुत दुखी था और इससे नाराज होकर वह घर से चला गया।


उसके जाते ही सभी के भाग्य 4 दिन आ गए और वहां के लोग दुखी रहने लगे। धर्मा से लोगों की परेशानी नहीं देखी गई और वह अपने भाई को खोजने निकल पड़ा। 


कुछ दूर चलने पर उसे प्यास लगी। दूर एक नदी दिखाई थी, लेकिन नदी में पानी नहीं था। जब से कर्मा भाई यहां से गए हैं। हमारे कर्म फूट गए हैं। कुछ दूर जाने पर आम का एक पेड़ मिला।


उसके सारे फल सड़े हुए थे। उसने कहा कि जब से हमारा पल ऐसे ही बर्बाद हो जाता है। मैं रास्ते में कई लोग मिले जिन्होंने धर्मा से ऐसी ही बात कही धर्मा चलते चलते। क्रिस्तान में जा पहुंचा। 


जहां उसने कहा कि कर्मा धूप और गर्मी से परेशान है। उसके शरीर पर फोड़े पड़े हैं और वह व्याकुल हो रहा है। धर्मा समझा-बुझाकर कर्मा को लेकर घर चल पड़ा। रास्ते में जो लोग मिले थे, सब को सत्कर्म की शिक्षा देते हुए कर्मा अपने घर पहुंचा। 


जहां उसने पोखर में कर्म की डाल लगाकर पूजा के बाद पूरे इलाके में फिर से खुशियां लौट आई और तभी उसी दिन से करमा पूजा का आयोजन किया गया है

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