Thursday, January 26, 2023

आइना कैसे बनता है?

दोस्तो तो एक बार फिर से स्वागत है। आपका Technical prithvi में आज के इस पोस्ट में बताएंगे शीशा कैसे बनता है। जैसा कि आपकी स्क्रीन पर देख रहा होगा यह वर्कर्स कितनी आसानी से शीशा बना रहे हैं। तो अब हम आपको एक ऐसी चीज के बारे में बताने वाले हैं।

आइना कैसे बनता है
 जिसे देखे बिना आप 1 दिन भी गुजार नहीं सकते और अगर बात लड़कियों की आती है।तो हर घंटे इस चीज के दर्शन कर नहीं करने हमें पता है। आप समझ गए होंगे लेकिन फिर भी हम आपको बता दें कि हम ऐना की बात कर रहे हैं।


 एक ऐसी चीज है जिसे देखकर इंसान अपने आप से मिलता है यह समझ पाता है कि वह कैसा दिखता है और कैसा नहीं ऐसे नहीं शीशे के बारे में आप लोगों ने काफी सुना और पढ़ा होगा पर आज इस post में मैं यानी आपका दोस्त prayag kumar आपको यह बताऊंगा कि आखिर ये शीशा बनता कैसे हैं।


 किस तरह से बना कर तैयार किया जाता है ताकि आपकी खूबसूरती को और निखारने के लिए आपके सामने खड़ा हो जाए इसलिए बिना एक पल की देरी के चलिए शुरू करते हैं। हमारी आज की शानदार पोस्ट लेकिन पोस्त शुरू करने से पहले एक छोटी सी रिक्वेस्ट है। की आप अपने दोस्तों के पास जरूर शेयर करे।



दोस्तों आईना बनने के लिए पहले एक क्लियर कट बड़े से कांच के गिलास को होरिजेंटली यानी कि लेटा कर रोबोटिक सिस्टम के जरिए कन्वेयर बेल्ट तक पहुंचाया जाता है। और केंद्रीय बेल्ट से होते हुए कांच को वॉशिंग स्टेशन तक ले जाया जाता है। जहां पर पानी और सीरी बॉक्साइट से कांच को पूरी तरह से कवर कर दिया जाता है।


 साथ ही साथ घूमते हुए रोटेटिंग ब्रश शीशे में वाशिंग भी करते रहते हैं राकेश का सर्विस सूट और बढ़िया रहे क्योंकि कई बार कई तरह के मेडिकल जांच में फंसे रहते हैं। जिन्हें निकालना बहुत जरूरी है वॉशिंग प्रोसेस पैनल में करीब 1 मिनट का वक्त लेता है।


 जिसके बाद कांच को आगे की प्रोसेस के लिए भेज दिया जाता है। जिसमें उसे दी मिनिरलाइज्ड पानी से होकर गुजरना होता है। क्योंकि प्लेंटी आफ वॉटर में मौजूद जो मिनरल्स होते हैं। वह मेटल्स को डैमेज कर देते हैं। आगे आने वाले प्रोसेस में अप्लाई किए जाते हैं। ऐसे में दूध तो कांच के ऊपर जो सबसे पहला मेडल चढ़ता है।


 वह हेल्प यू फाइंड ए जोशी किसी के पीछे चढ़ता अली के उपाय इसलिए चढ़ाया जाता है। क्योंकि जो अगला मैच लाइव सिल्वर है। और सिल्वर को यूं ही किसी पर चढ़ाया जाएगा तो वह ठीक तरह कांच पर चिपक नहीं पाता है।


वैसे हम आपको बता दें कि सिल्वर भी लिक्विड के रूप में होता है क्योंकि इससे कांच के ऊपर चढ़ाना होता है और तो और इसमें कई सारे केमिकल एक्टिवेट अभी मौजूद होते हैं जिसकी वजह से शीशे से मिलता है। वह पूरी तरह से हार्ड हो जाता है और उसमें स्टिक हो जाता है।


 ऐसे में आपको कांच के ऊपर रिफ्लेक्शन दिखनी शुरू हो जाती है क्योंकि सिल्वर्की कोटिंग अपना काम शुरू कर देती है। क्योंकि जितना भी एक्स्ट्रा सिल्वरिंग वहां पर मौजूद होता है उसे रिसाइकल करके ठीक किया जाता है।


पूरी तरह से सही आकार में हो और जब रिकॉर्डिंग को पूरी तरह से सेट कर दिया जाता है तो उसके ऊपर दो तरह की पेंट की जाती है ताकि सिल्वर कोटिंग पूरी तरह से उसी में चिपक जाए और कभी निकले नहीं जिसकी वजह से सबसे पहले कॉपर किलियर सिल्वर के ऊपर चढ़ाई जाती है। कबर की लहर चढ़ने के बाद आगे की प्रोसेस के लिए कांच को भेजा जाता है।


 जिसमें कॉपर को पूरी तरह से सेट करने का काम होता है। और जब का पर सेट हो जाता है उसके बाद हर पैनल को ड्रायर्स में भेजा जाता है जिसका तापमान 71 डिग्री सेल्सियस होता है ऐसे में दोस्तों इस प्रोसेस के दौरान मात्र 75 सेकंड में जितना भी एक्स्ट्रा कॉपर उसके ऊपर होता है। वह सारा हट जाता है।


दोस्तों अब बारी आती है कॉपर लगी हुई साइड के ऊपर पेंट करने की जहां पर लगातार पेंट गिरता रहता है ताकि कॉपर की साइड को पूरी तरह से पॉलिश कर दिया जाए और फिर फ्रेश पेंट को कटिंग करवाने के बाद मेरे को ओवन में 99 डिग्री सेल्सियस के तापमान में भेज दिया जाता है।


 ऐसे में करीब 105 सेकंड ईयर की 1 मिनट 45 सेकंड के बाद ऐना को 1 से निकालने के बाद दूसरी बार पेंट की कटिंग करने के लिए ले जाया जाता है इस बार पेंट का कलर दूसरा होता है इसका कारण सिर्फ और सिर्फ पहली और दूसरी कोटिंग में अंतर पता करना है उसके अलावा और कुछ नहीं और जब भी प्रिंट की शूटिंग पूरी हो जाती है तो दोबारा से इसे ओवन में भेज दिया जाता है।


लेकिन इस बार उसका टेंपरेचर और ज्यादा होता है जी हां इस बार 150 डिग्री सेल्सियस नहीं करीब 3 मिनट से भी अधिक समय तक के लिए शीशे को दबाया जाता है। तो इन सभी प्रोसेस के बाद आईना बनकर तैयार हो जाता है। और फिर एक बार कर आईने में गलतियां ढूंढने लगता है जहां अगर कहीं भी कोई गलत भी हो जैसे कि कोई बबल वगैरह हो तो उसे वहीं से हटा दिया जाता है।


 वैसे अक्सर तो कोई गलती नहीं होती है क्योंकि सारा काम मशीनों द्वारा किया जाता है जहां जब यह सभी प्रोसेस खत्म हो जाते हैं तो कस्टमर के ऑर्डर के हिसाब से शीशे को श्रीपति जाती है जिसमें सभी रंगों से होनी चाहिए तो कभी स्क्वायर और कई सारे ऑर्डर तो सर कल शिव के मेरे उनके भी होते हैं।


इन सभी को काटने के लिए अलग-अलग तरह की मशीन होती है। खासकर केसरगंज सीख देने के लिए क्योंकि उसे बिल्कुल परफेक्ट शेप में काटना ओभी ज्यादा जरूरी होता है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि आप इस बात को अच्छे से जानते होंगे कि अगर हल्का सा भी गलत काटा जाता है।


 तो पूरा शीशम बर्बाद हो जाता है। ऐसी वजह से सारा काम प्रोफेशनल तरीके से किया जाता है। जहां कई बार तो शीशे की मशीन को सेट करने के लिए कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि कई सारी ट्रेन वर्कर की मशीन द्वारा कट हो जाने के बाद उन्हें अलग करते हैं। क्योंकि यह काम भी काफी सावधानी का होता है। जिसमें हल्की सी भी चूक नहीं होनी चाहिए ऐसे में दोस्तों अब तो आपको समझ में आ गया होगा कि किस तरह मशीनों की मदद से बड़े-बड़े कांच को बनाकर तैयार किया जाता है।


हालांकि इस प्रोसेस इतने बड़े पैमाने में इसलिए किया जाता है क्योंकि उनकी मैत्री का काम है बाकी अगर कोटिंग वगैरा करनी होती है तो यह सारी चीजें कई लोग हादसे भी करके शीशा तैयार कर देते हैं क्योंकि यह सारा काम साइंस पर डिपेंड करता है शादी आईना बनाने वाले की टेक्निक बड़ी चीज डिपेंड करती है तो दोस्तों उम्मीद है आप हमारी आज की पोस्ट को काफी पसंद किए हैं उनको काफी पसंद किए होंगे


अगर हां तो इस पोस्ट के बारे में आपका क्या कहना है हमें कमेंट करके जरूर बताइए और ऐसे इंटरेस्टिंग पोस्ट को लगातार देखने के लिए हमारे वेबसाइट technical prithvi को सब्सक्राइब करना बिल्कुल ना भूलें और हां हम फिर मिलेंगे नए पोस्ट में जय हिंद जय भारत

No comments:
Write comment