Thursday, September 21, 2023

महिला आरक्षण बिल का इतिहास

 

संसद का 5 दिन का विशेष सत्र 18 सितंबर 2023 को शुरू हुआ। संसद की पुरानी इमारत में शुरू हुआ यह सत्र संसद की इमारत में खत्म होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मोदी कैबिनेट ने महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दे दी है। 

महिला आरक्षण बिल का इतिहास

यह बिल पिछले 27 सालों से अटका हुआ था। कैबिनेट का फैसला सार्वजनिक नहीं हुआ है, लेकिन केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। हालांकि बाद में उन्होंने अपना स्वीट डिलीट भी कर दिया। इसके बाद इस बात की चर्चा तेज हो गई कि सरकार विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पेश कर सकती है। 


महिला आरक्षण बिल का इतिहास

महिला आरक्षण बिल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है। उस समय एच डी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था । लेकिन यह बिल पारित नहीं हो सका। यह बिल 81 वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था। 


बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था। इसके 33 फ़ीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति यानी एससी और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान था। लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था ।


इस बिल में प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए। आरक्षित सीटें राज्य केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के जरिए आवंटित की जा सकती है। इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण खत्म हो जाएगा । 


33 mahila aarakshan

अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने 1998 में लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश किया था। कई दलों के सहयोग से चल रही भाजपा की सरकार को इस को लेकर विरोध का सामना भी करना पड़ा। इस वजह से यह बिल पारित नहीं हो सका । वाजपेई सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2004 में भी पारित कराने की कोशिश की थी, लेकिन वे सफल नहीं हो सके । 


बीजेपी सरकार जाने के बाद 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आई और डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108 में संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया । वह यह बिल 9 मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हो गया। बीजेपी वामदलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था। यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया। 


महिला आरक्षण बिल का उलंघन किसने किया था ? 

इसका विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी ,  राष्ट्रीय जनता दल भी शामिल थे। यह दोनों दल यूपीए का हिस्सा थे। कांग्रेस को डर था कि अगर उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार खतरे में पड़ सकती है। 


साल 2014 में लोकसभा भंग होने के बाद यह बिल अपने आप खत्म हो गया, लेकिन राज्यसभा स्थाई सदन है। इसलिए यह बिल अब भी जिंदा है। अब इसे लोकसभा में नए सिरे से पेश करना पड़ेगा। अगर लोकसभा से पारित कर दें तो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन जाएगा । 


महिला आरक्षण बिल के फायदे

अगर यह बिल कानून बन जाता है तो 2024 के चुनाव में महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण मिल जाएगा। इससे लोकसभा की हर तीसरी सदस्य एक महिला होगी। साल 2014 में सत्ता में आई बीजेपी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में इस बिल की तरफ ध्यान नहीं दिया ।


नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में इसे पेश करने का मन बनाया हालाकि उसने 2014 और 2019 के चुनाव घोषणा पत्र में 33 फ़ीसदी महिला आरक्षण का वादा किया है। इस मुद्दे पर उसे मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का भी समर्थन हासिल है। 


कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने 2017 में प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर इस बिल पर सरकार का साथ देने का आश्वासन दिया था। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने 16 जुलाई 2018 को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर महिला आरक्षण बिल पर सरकार को अपनी पार्टी के समर्थन की बात दोहराई थी । 


18 सितंबर 2023 को कैबिनेट की बैठक में महिला आरक्षण बिल को मंजूरी मिलने की बात सामने आने के बाद कांग्रेस ने इस मुद्दे को उठाया । कांग्रेस ने कहा कि बहुमत होने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में इस बिल को पारित कराने का कोई प्रयास नहीं किया ।


कांग्रेस ने विशेष सत्र में इस बिल को पारित कराने की मांग की है। विशेष सत्र से पहले सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इसमें कांग्रेस की बीजू जनता दल और भारत राष्ट्र समिति और अन्य कई दलों ने महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पेश करने पर जोर दिया। 


आज के लिए इतना ही हमारे ब्लॉग के साथ अंत तक बने रहने के लिए आप सभी लोगो को दिल से धन्यवाद ,,,,,,,,,,,


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