Wednesday, July 5, 2023

पूजा पाठ करने वाले लोग दुखी क्यों रहते हैं

 

बहुत बार ऐसा देखने को मिलता है जो ज्यादा भगवान का पूजा पाठ करता है। वही सबसे ज्यादा दुखी होता है जबकि कोई नास्तिक आदमी जो भगवान को नहीं मानता कभी पूजा पाठ नहीं करता । कभी संतो का संग नहीं करता। वह सबसे ज्यादा सुखी जीवन जीता है। यह सब चीजें देखकर कभी-कभी लगता है कि भगवान ही गलत है । 

पूजा पाठ करने वाले लोग दुखी क्यों रहते हैं

भगवान का न्याय ही गलत है या कोई कहानी नहीं। यह हर किसी के साथ होता है। दोस्तों इस पोस्ट में हम आप लोगों को इसके पीछे के कारण के बारे में बताने वाले हैं। भगवान श्री कृष्णा ने स्वयं इसका उत्तर दिया है कि आखिर ज्यादा पूजा पाठ करने वाले लोग दुखी और परेशान क्यों रहते हैं । इसका उत्तर भगवान कृष्णा ने श्रीमद्भागवत गीता के माध्यम से बड़ी स्पष्टता के साथ बताया है तो चलिए शुरुआत करते हैं। 


पूजा पाठ करने वाले लोग दुखी क्यों रहते हैं

दोस्तों बात द्वापर युग की है जब भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद हो रहा था। तब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा। हे माधव जो लोग ज्यादा पूजा पाठ करते हैं, वह ज्यादातर दुखी और परेशान क्यों रहते हैं। इसके पीछे कारण क्या है जबकि वो लोग जो भगवान का नाम ही नहीं लेते, भगवान का स्मरण भी नहीं करते । 


वह लोग हमेशा गलत कार्य करते हैं। उन लोगों को जीवन में सुख मिलता है । इसके पीछे का रहस्य मुझे समझाने का प्रयास करें। तब भगवान श्रीकृष्ण ने एक छोटी सी कहानी के माध्यम से अर्जुन को इसका उत्तर दिया जानते हैं। उस छोटी सी कहानी के बारे में । 


भागवत गीता के अनुशार से ज्यादा पूजा करने वाले लोग दुखी क्यों रहते हैं ? 

एक गुरु के दो शिष्य थे। दोनों ही पढ़े-लिखे और विद्वान थे। दोनों में सिर्फ फर्क इतना था कि एक भगवान को मानने वाला था और दूसरा भगवान को ना मानने वाला था। नास्तिकता एक ऐसा था जहां पर भगवान की कथा होती थी, जहां सत्संग होता था। जहां भजन होता था, वहा दौड़ा चला जाता था और भगवान की पूजा पाठ करने लगता था। 


दूसरा शिष्य इन सब चीजों से काफी दूर था। वह शराब पिया करता था। वेश्याओं के यहां जाया करता था। सारी बुरी आदतें दूसरे शिष्य में थी। 1 दिन क्या हुआ कि जब वह शिष्य शराब पीकर अनाप-शनाप बोलते हुए रास्ते में चलते हुए अपने घर को जा रहा था। अचानक उसको रास्ते में पैसों से भरा एक बैग मिल जाता है। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। 


वह जोर-जोर से चिल्लाते बताता है। आज मुझे पैसों से भरी भेग् की थैली मिल गई है। मेरा जिवन सफल हो गया । इन पैसों से अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति कर लूंगा। वही दूसरा मित्र मंदिर से भजन करते हुए अपने घर को जा रहा था । अचानक उसकी पैर में  बड़ी काटी चुभ जाती है। रक्त निकलने लगता है। 


ठीक उसी समय दूसरा शीशे भी वहां पहुंच जाता है और हंसते हुए उसको बोलने लगता है क्यों तुम ही हो ना जो सबसे ज्यादा पूजा पाठ करते हो। भगवान का भजन करते हो, क्या किया तुम्हारे भगवान ने मुझे देखो, मैं कभी मंदिर नहीं गया । मैंने कोई अच्छा काम किया है। मेरे घर में भगवान का मंदिर भी नहीं है। मैंने कभी अपने बारे में सत्यनारायण भगवान की कथा नही कराया । 


भगवान के सामने कभी माथा नहीं टेका फिर भी मैं कितना संपन्न हो, अमीर हूं। मेरे पास पैसों की कोई कमी नहीं है। सबसे ज्यादा सुखी जीवन में ही जी रहा हूं। अच्छे शिष्य को उसके बाद चुभने लगी। उसने मन ही मन भगवान से प्रार्थना किया या तो सच बोल रहा है। मैं कितना पूजा पाठ करता हूं और वह कुछ नहीं करता। 


फिर भी कितना सुखी है। इतना सोचते हुए वह अपने गुरु के पास चला जाता है और यही प्रश्न गुरु से करता है। गुरु जी मुस्कुराते हुए बोलते हैं, भगवान जो करते हैं। अच्छे के लिए करते हैं ।  जिसकी जैसी योग्यता होती है उसको उसी के अनुसार फल देते हैं। अब तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर तुम जानते हो । 


भगवान ने पैरों में ही क्यों काटे चुभाए और उसको पैसे से भरी बैग क्यों मिली ।  सुनो तुम ने पिछले जन्म में बहुत पाप किया था। इसलिए तुम्हारी आज मौत होने वाली थी । तुम बच गए क्योंकि तुम मंदिर गए थे। तुमने भगवान की पूजा की थी। यही कारण है कि तुम्हारी मौत ना होकर सिर्फ एक कांटा ही चुभा । 


अब तुम्हारे मित्र की बात करते हैं। वह पूर्व जन्म में एक संत महापुरुष था, इसलिए उसकी जीवन बदलने वाली थी। करोड़ों की संपत्ति का मालिक बनने वाला था। मगर इस जन्म में उसने कोई भी अच्छा कार्य नहीं किया। इसलिए पूर्व जन्म के फल के अनुसार उसको थोड़े से पैसे मिले जबकि वह अरबों के संपति का मालिक बनने वाला था । 


भगवान को दोष देना छोड़ दो अपने वर्तमान के समय का सदुपयोग करें। भविष्य अपने आप सुधर जाएगा। इस प्रकार उसकी आंखें खुल गई और उसे पूजा-पाठ में लग गया । तो यही करना होता है कि जो पूजा पाठ करते हैं वो इतना दुख क्यों रहते हैं । 


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