Tuesday, February 14, 2023

क्या धरती शेषनाग के फन पर टिकी है

 

शेषनाथ ने क्यों और कैसे धारण किया था पृथ्वी को अपने फ्नो पर मित्रों हिंदू धर्म के कई ग्रंथों में ये वर्णन मिलता है कि शेषनाग के फन पर पृथ्वी टिकी हुई है। लेकिन क्या आपको पता है क्यों और कैसे नागों में सर्वश्रेष्ठ शेषनाग ने ऐसा किया। 

क्या धरती शेषनाग के फन पर टिकी है

क्या धरती शेषनाग के फन पर टिकी है

महाभारत एवं पुराणों में असुरों की उत्पत्ति एवं वंशावली के वर्णन में उल्लेख मिलता है कि ब्रह्माजी के 6 मानस पुत्रों में से एक मरीचे थे जिन्होंने अपनी इच्छा से कश्यप नामक प्रजापति पुत्र उत्पन्न किया। ऋषि कश्यप ने दक्ष प्रजापति की 17 पुत्रियों से विवाह किया, जिनमें से एक का नाम कडरू था जिस कि कोख से 1000 शक्तिशाली नागों का जन्म हुआ । 


जिसमें सबसे बड़े थे। शेषनाग कथा में यह भी वर्णन है कि महर्षि कश्यप की एक और पत्नी थी जिसका नाम विनता था। कहते हैं कि एक बार बिनता और कद्रो दोनों घूम रहे थे तभी उन्हें एक घोड़ा दिखाई दिया। कदरू ने कहा कि वह घोड़ा सफेद है, परंतु इसकी पूंछ काली है। यह सुनकर बिरता ने कहा कि घोड़ा पूरा सफेद है ।


इस बात को लेकर दोनों में शर्त लगी की जो हारा वो दूसरे की दासी बनकर रहेगा उस घोड़े को देखने के लिए अगला दिन तय हुआ घर आकर का कादरू ने शर्त हारने के भय से अपने सर्प पुत्रों को कहा कि वह घोड़े की पूंछ में चिपक कर काली पूछ का आकर ले ले। 


माता बिनता के प्रति अपनी माता कडरू और अपने भाइयों के कपाट की भावना को देखने के बाद शेष नाग ने अपने परिवार का त्याग कर दिया जिसके बाद वो हिमालय और गंधमादन के पर्वत पर तपस्या के लिए चले गए। वह केवल हवा की सहारे जीवन वापन करने लगे । 


शेषनाग के कितने मुंह होते हैं

और अपने इंद्रियों पर काबू पाने के लिए धयान्न करने लगे । उनकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और शेष नाग को वरदान दिया कि उनकी बुद्धि धर्म से कभी विचलित नहीं होगी। साथ ही ब्रह्मदेव ने शेष नाग को ये भी कहा ये यह पृथ्वी पहाड़ और नदियों के कारण हमेशा हिलती रहती है तो तुम इसे अपने फन पर धारण कर लो ताकि यह इस्थिर हो जाए 


जिसके बाद से ही ऐसा माना जाने लगा। की ब्रह्मा जी के कहने पर शेषनाग ने पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लिया था। ऐसा भी कहा जाता है। शेषनाग के हजार मस्तक है। इनका कभी अंत नहीं हो सकता। इसीलिए इन्हें अनंत नाम से जाना जाता है। इतना ही नहीं भगवत गीता में भगवान कृष्ण खुद इनकी शक्ति का बखान करते हुए कहा है कि वो नागो में श्रेष्ठ आदि शेष है। 


इसके अलावा ज्यादातर धार्मिक ग्रंथों में शेषनाग के बाद वह वासुकी को नागों का राजा बताया गया है। इन्हें शेषनाग की छोटा भाई भी माना जाता है। बात अगर की शक्तियों की करें तो भगवान शिव के परम भक्त होने के कारण ही इन्हें शिवजी ने अपने गले में धारण किया था। इसके अलावा पुराणों के अनुसार जब समुद्र मंथन हुआ। तब दानवो ने इन्हीं रशी और मंदराचल पर्वत को मथनी बनाया था। 


इतना ही नहीं त्रिपुरदाह के समय में शिव जी के धनुष की डोर बनने वाली कोई और नहीं बल्कि बासुकीनाथ ही थे। साथ ही वासुकी प्राणिया जीवन ऊर्जा जिसे कुंडलिनी कहते हैं उसका प्रतिनिधि यही करते हैं । 



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