Monday, October 23, 2023

मनुष्य बर्वाद होने का क्या कारण है | मनुष्य क्रोध से बर्वाद होता है

 

दशकों हम इंसानों की यह फितरत है कि जब कोई हमारी प्रशंसा करता है तो हम फूले नहीं समाते। वहीं अगर कोई हमारी बुराई कर देता है तो हम तुरंत चिढ़ जाते हैं और सामने वाले व्यक्ति को बिना कुछ सोचे समझे बुरा भला कहने लगते हैं जिसका कारण है। हमारा क्रोध हम इंसान क्रोध के वश में आकर कई तरह की गलतियां कर बैठते हैं। 

मनुष्य बर्वाद होने का क्या कारण है | मनुष्य क्रोध से बर्वाद होता है

लेकिन यह नहीं समझते कि क्रोध ही हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है। वह क्रोधी है जो भाई को भाई से पिता को पुत्र से और पति पत्नी को अलग कर देता है। या यूं कहें कि खुद ही मनुष्य द्वारा किए जाने वाले सभी अपराधों का मूल कारण है। मित्रों आप हमेशा ध्यान रखें कि क्रोध और आंधी दोनों बराबर होते हैं। 


शांत होने के बाद ही मनुष्य को पता चलता है कि कितना नुकसान हुआ है। यही कारण है कि भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने क्रोध को नर्क का द्वार बताया है। आज के इस एपिसोड में हम आपको बताएंगे कि क्रोध क्या है? और भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने क्रोध को नियंत्रण करने के क्या उपाय बताए हैं? 


मनुष्य बर्वाद होने का क्या कारण है | मनुष्य क्रोध से बर्वाद होता है

भागवत गीता के अध्याय 2 में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि क्रोध मनुष्य की वह भावना है जो उसके सारे जीवन को संकटों से घेरे रखती है। जो मनुष्य बात - बात पर क्रोधित हो जाए। मैं अपनी संपूर्ण जीवन में ना तो तरक्की कर सकता है और ना ही वह सुखी रह सकता है। 


क्योंकि क्रोधित मनुष्य ना तो उम्र की मर्यादा समझता है। और ना ही ज्ञान की भाषा ऐसी मनुष्यों में कब कहां और किस कारण से क्रोध पैदा हो जाए। कुछ कहा नहीं जा सकता। मनुष्य के अंदर जब क्रोध जन्म लेता है तो तुरंत ही विचार करने की शक्ति खो जाती है। 


आप रोज कारागृह का भर्मण करे ? 

बुद्धि रूपी आंखों पर क्रोध रूपी अंधकार का पर्दा छा जाता है। ऐसी स्थिति में वर्षों के संबंध पल भर में टूट जाते हैं और संप्रुन जीवन नष्ट हो जाता है। अगर आपको हमारी यह बात समझ में नहीं आ रही तो किसी रोज कोई कारागार का भ्रमण कीजिए । 


जहां आपको अधिकतर अपराधी क्षण भर के क्रोध का दंड भोंकते दिखाई देंगे और इससे भी बड़ी विडंबना यह है कि अधिकतर मनुष्य क्रोध से होने वाले नुकसान के बारे में जानते हुए भी समय आने पर क्रोध पर अंकुश नहीं लगा पाते। वह बार-बार क्रोध ना करने का प्रण तो लेता है परंतु जैसे ही उसकी कोई इच्छा की पूर्ति नहीं होती या फिर कोई व्यक्ति किसी काम में उससे आगे निकल जाता है।


क्रोध है क्या ओर जन्म क्यो लेता है ? 

तो दोस्तो आपने देखा होगा । कि जब एक छोटे बालक को किसी भी वस्तु का इच्छा होती है। उस समय उसे वह नही मिलती है। या फिर कोई उसे भावित करता है। बालक की प्रतिक्रिया क्रोध है क्योंकि बालक निर्लब है ।


निस्सहाय है बालक अपने से बड़ों को अपने वजूद का एहसास करवाने का प्रयास करता है। ऐसे ही जब मनुष्य बड़ा हो जाता है तो उसके मन में कुछ पर कुछ पाने की इच्छा भर कर जाती है और जो भी उसकी इच्छा पूरी नहीं होती तो वह क्रोध के बस में आ जाता है। 


फिर उसकी सोचने की सारी शक्ति क्षीण हो बिन हो जाती है और वे कुछ ऐसा काम कर बैठता है। जिसे वे शांत मन में नहीं करना चाहता था अर्थात क्या क्रोध वास्तव में केवल बालक जैसे व्यवहार का नाम नहीं। इसके अलावा जब मनुष्य के अहंकार को घाव होता है या जब उसे किसी से भय लगता है

 

क्रोध को बन्द कैसे कर सकते हैं ? 

या फिर जब कोई वस्तु से प्राप्त नहीं होती । तब मनुष्य को क्रोध आता है। ठीक इसी बालक की भांति फिर भी हम बालक की भांति क्रोध करना बंद नहीं करते। मनुष्य अपने अनुभव से जानता है कि क्रोध से कभी कुछ प्राप्त नहीं होता। चाहे वह सम्मान हो। यह संपत्ति हो, प्रेम हो या सुरक्षा हो, क्रोध से नहीं मिलता। मिलता है तो प्रयासों से। 


कार्य करने से बुद्धि पूर्वक विचार करने से फिर भी मनुष्य थोड़ा सा कारण मिलते ही क्रोध कर बैठता है। अर्थात क्रोध वास्तव में कुछ नहीं हमारी बालक बुद्धि का नाम है। जैसी हम इतना स्मरण में रखें कि हम बालक नहीं बालक जैसा व्यवहार हमें शोभा नहीं देता। वैसे ही क्रोध स्वयं ही बंद हो जाता है। 


क्रोध आने के बाद क्या करना चाहिए ? 

आगे भागवत गीता के अध्याय 2 में श्री कृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को चाहिए कि जब जीवन में कभी मनुष्य को पहली बार क्रोध आए और जब उसका क्रोध शांत हो जाए तो मनुष्य को चाहिए कि वह क्रोध से हुए नुकसान की एक सूची तैयार करें । और जब कभी उसे ऐसा महसूस हो कि वह फिर एक बार क्रोध के आवेश में जा सकता है। तो वह उस सूची को ध्यान से पढ़ें । जिससे वह क्रोध को करने से आसानी से बच सकता है। 


मनुष्य में क्रोध क्यो आता है ? 

इसके अलावा भागवत गीता के अध्याय 3 व श्री कृष्ण यह भी बताते हैं कि जब कोई मनुष्य किसी वस्तु या व्यक्ति के बारे में निरंतर सोचने लगता है तो उसके मन में वह वस्तु के प्रति धीरे धीरे लगा उत्पन्न हो जाता है।  लगाव से इच्छा उपन्न हो जाती है और जब इच्छा पूरी नहीं हो पाती तो क्रोधित हो उठता है। 


इसके अलावा जब किसी मनुष्य को कर्म के अनुरूप फल नहीं मिलता तो उस परिस्थिति में भी क्रोध उत्पन्न होता है। इसलिए श्री कृष्ण भागवत गीता में कहते हैं कि मनुष्य को निरंतर अपना कर्म करते रहना चाहिए। 


क्या भोजन से भी मनुष्य क्रोध होता है ? 

नाकि फल के चिंता करना चाहिए। श्री कृष्ण भागवत गीता में कहते हैं। कि क्रोध का एक प्रमुख कारण मनुष्य द्वारा ग्रहण किया जाने वाला भोजन भी है जो मनुष्य सात्विक भोजन करता है। वह कभी क्रोधित नहीं हो सकता। 


जबकि जो मनुष्यता तामसिक या फिर राजकीय भोजन ग्रहण करता है। उस पर क्रोध जलधारी हो जाता है। अर्थात मनुष्य को चाहिए कि क्रोध रूपी अंधकार से बचने के लिए वह सोच समझ कर बोलें और काम करें। 


साथ ही वह जो कर्म करने जा रहा हो ।  उसके परिणाम के बारे में पहले ही भली भांति विचार कर ले तो मित्रों में करता हूं कि आपको भागवत गीता की जानकारी पसंद आई होगी। अगर पसंद आई हो तो इस जानकारी को ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ शेयर करें।


तो आज के लिए इतना ही अब हम चलते हैं। फिर मिलेंगे नई जानकारी के साथ तब तक हमारे ब्लॉग के अंत तक बने रहने के लिए आप सभी लोगो को दिल से धन्यवाद ,,



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