Wednesday, March 13, 2024

गरुड़ पुराण: स्वर्ग जाने का शिधा मार्ग ।। How can one go to heaven as per hinduism


मित्रों मृत्यु के बाद आपको स्वर्ग की प्राप्ति होगी या नरक की इस पर तो खैर किसी का वश नहीं है परंतु फिर भी आपको कुछ ऐसे कृतियों का पता चल जाए जो मरणासन्न व्यक्ति के स्वर्ग प्राप्ति का रास्ता बताता है।  तो निश्चित ही आप उसे जरूर जाना चाहेंगे।

गरुड़ पुराण:  स्वर्ग जाने का शिधा मार्ग ।। How can one go to heaven as per hinduism

 तो मित्रो गरुड़ पुराण के नौवें अध्याय में ऐसे ही कुछ कृतियों का वर्णन मिलता है। जो मरते हुए व्यक्ति के स्वर्ग जाने की संभावना को एक सीमा तक निश्चित करता है। 


आइए जानते हैं उन्हीं कृतियों के बारे में आज की खास पोस्ट में नमस्कार मित्रों  स्वागत है। आपका technical prithvi.in 


   गरुड़ पुराण:  स्वर्ग जाने का शिधा मार्ग ।। How can one go to heaven as per hinduism

18 महा पुराणों में से एक गरुड़ पुराण में जहां एक और मृत्यु का रहस्य छिपा है तो दूसरी ओर जीवन को लेकर कई कोड बातों का वर्णन भी किया गया है। उनमें से एक रहस्य मनुष्य के मरने से पहले ही स्वर्ग जाने की तैयारी से भी जुड़ा है। 


  मृत्यु से पहले स्वर्ग जाने का रास्ता 

गरुड़ पुराण के नौवें अध्याय में वर्ण अनुसार जब मनुष्य अपना शरीर छोड़ने लगता है तो उस समय तुलसी के समीप गोबर से एक मंडल की रचना करनी चाहिए। उसके बाद उस मंडल के ऊपर तेल बिछड़कर पुश हो को बिछाए तत्पश्चात उनके ऊपर श्वेत वस्त्र के आसन करें।


 भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम शिला को स्थापित करें और यह तो स्वाभाविक सी बात है। जहां पाप जोश और क्रोध को हरण करने वाली शीला विद्यमान है। उसके समीप में मरने वाले प्राणी को मुक्ति मिलना निश्चित है।


गरुड़ पुराण के अनुसार तुलसी को क्या करना चाहिए। 

 इसके साथ ही गरुड़ पुराण में तुलसी के पौधे की महत्ता को भी कुछ इस प्रकार बताया गया है। जहां जगत किताब का हरण करने वाली तुलसी वृक्ष की छाया है। वह मरने से सदैव मुक्ति प्राप्त होती है।


 जिस मुक्ति का दान आदि कर्मों से भी प्राप्त होना दुर्लभ होता है। जिस घर में तुलसी वृक्ष के लिए स्थान बना हुआ है, वह घर त्रित स्वरूप ही है। महा यम के दूत प्रवेश नहीं करते।


 तुलसी की मंजरी से युक्त होकर जो प्राणी अपने प्राणों का परित्याग करता है, वह सैकड़ों पापों से युक्त हो तो भी यमराज उसे देख नहीं सकते। तुलसी के पत्ते को मुकद्दर तिल और कुश के आसन पर मरने वाला व्यक्ति पुत्र ही ना हो तो भी निसंदेह विष्णुपुर को जाता है। 


कहा जाता है तीनों प्रकार के तेल में काले सफेद  और भूरे तुलसी यह सब मृतप्राय प्राणी को दुर्गति से बचा लेते हैं। साथ ही मित्रों भगवान विष्णु टिल को अपने से जोड़ते हुए कहते हैं। 


मेरे पसीने से तिल पैदा हिये, आता वो  पवित्र है। जिस कारण असुर दानव और वैसे भी तिल को देख कर भाग जाते हैं। यही नहीं भगवान विष्णु ने तो कुछ को भी अपने से कुछ इस प्रकार बताया है। हे गरुड़ मेरे रूम से पैदा हुए कुश मेरी विभूति है इसलिए उनके स्पर्श से ही मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।


कुश क्या है। कुश में कौन सा भगवान है। 

 कुश के मूल में ब्रह्मा कुश के मध्य में जनार्दन और कुश के अग्र भाग में शंकर स्थित है। इस प्रकार तीनों देवता कुश में निवास करते हैं। इसलिए ऐसी मान्यता है कि कुश अग्निमित्र तुलसी ब्राह्मण और गौ यह बार-बार उपयोग किए जाने पर भी निर्माण ले अर्थात अपवित्र नहीं होते।


 वहीं दूसरी और पिंडदान में उपयोग किए गए धर्मप्रीत की नियमित भोजन करने वाले ब्राह्मण नीच के मुख से उच्चारित मंत्र नीच संबंधी गाय और तुलसी तथा चिता की आग इन सबको निर्माण ने बताया है।


मरनाशन व्यक्ति को कहा पर सोलाना चाहिए। 

 गरुड़ पुराण के अनुसार गोबर से लिपी हुई कुश बिछाकर संस्कार की हुई पृथ्वी पर मरणासन्न व्यक्ति को स्थापित करना चाहिए। जितना हो सके अंतरिक्ष का परिहार करना चाहिए। अर्थात मरते हुए व्यक्ति को चौकी आदि पर नहीं रखना चाहिए।


 ब्रह्मा विष्णु रुद्र तथा अन्य सभी देवता और अग्नि यह सभी मंडल पर विराजमान रहते हैं। इसलिए मंडल की रचना कर रही। जो भूमि लेत होती है अर्थात, मल, मूत्र आदि से रहित है।


मरनाशन व्यक्ति भूत क्यो बनता है।

 वह सर्वत्र पवित्र होती है। किंतु जो भूमि भाग कभी लीपा जा चुका है या मल, मूत्र आदि से दूषित है। वह पूना अपने पर उसकी शुद्धि हो जाती है। माना जाता है बिना लिपि हुई भूमि पर और चारपाई आदि पर या आकाश में राक्षस, विशाल भूत प्रेत और यमदूत प्रविष्ट हो जाते हैं।


 इसलिए भूमि पर मंडल बनाए बिना अग्निहोत्र कुराक, ब्राह्मण, भोजन, देव, पूजन और मरणासन्न व्यक्ति का स्थापन नहीं करना चाहिए। इसलिए लिपि हुई भूमि पर आतुर व्यक्ति को लिटा कर उसके मुख में स्वर्ण और रितिका प्रक्षेप करके सालग रामस्वरूप जी भगवान विष्णु का चरणामृत देना चाहिए


    बेनकुठ लोक कैसे जाता है। 

 गरुड़ पुराण के अनुसार जो शालिग्राम शिला के जल को बिंदु मात्र भी पीता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर सीधे बैकुंठ लोक में जाता है। इसलिए अतुल व्यक्ति को उसके। बड़े से बड़े पापों को नष्ट करने  वाला गंगा जल देना चाहिए।


 गंगा जल का पान सभी तीर्थों में किए जाने वाले स्नान जाना जी के समान पुण्य रूपी फल को प्रदान करने वाला है। इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं जो मनुष्य शरीर को शुद्ध करने वाले चंद्रायण व्रत को एक हजार बार करता है।


मरनाशन व्यक्ति को हरी का धाम कैसे प्राप्त होता है?

 और जो मनुष्य एक बार गंगा जल का पान करता है। दोनों ही एक समान फल देने वाले हैं। भगवान विष्णु गंगा की महत्ता को कुछ इस प्रकार कहते हैं कि हे गरुड़ जैसे रुई की राशि नष्ट हो जाती है। उसी प्रकार गंगाजल के संपर्क में आने से सभी पाप जलकर राख हो जाते हैं।


 जो सूर्य की किरणों से संतप्त गंगा के जल का पान करता है। वह सभी योनियों से छूटकर हरि के धाम को प्राप्त होता है। अन्य नदियां मनुष्यों को स्नान करने पर पवित्र करती हैं किंतु गंगा जी के तो दर्शन स्पर्श दान सभी पवित्र करने वाले हैं।


    गंगा जल पीने से क्या होता है? 

 यही नहीं गंगा नाम का कीर्तन करने मात्र से। सेकड़ो हजारों पुणे रहे पुरुष भी पवित्र हो जाते हैं। इसलिए संसार से पार लगा देने वाले गंगाजल को पीना चाहिए।


मरनाशन व्यक्ति विष्णु लोक कैसे प्राप्त करता है? 

 जो व्यक्ति प्राणों के कंठ गत होने पर गंगा गंगा ऐसा उच्चारण करता है। वह विष्णु लोक को प्राप्त होता है और पुनः भूलोक में जन्म नहीं लेता। प्राणों के निकलने के समय जो पुरुष श्रद्धा युक्त होकर मन से गंगा का चिंतन करता है,


 वह भी परम गति को प्राप्त होता है। अतः गंगा का ध्यान गंगा को नमन गंगा का संस्मरण करना चाहिए और गंगा जल का पान भी करना चाहिए।


 साथ इसके पश्चात मोक्ष प्रदान करने वाली श्रीमद्भागवत गीता के 1 श्लोक आधे श्लोक या एक पाठ का भी पाठ करने वाला व्यक्ति ब्रह्मलोक को प्राप्त होकर पुनः इस संसार में कभी नहीं आता।


गरुड़ पुराण:  स्वर्ग जाने का शिधा मार्ग ।। How can one go to heaven as per hinduism

 गरुड़ पुराण के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को मरण काल में वेद और उपनिषदों का पाठ और शिव व विष्णु की स्तुति से मुक्ति प्राप्त होती है। यह भी बताया गया है कि प्राण त्याग के समय मनुष्य को अनशन व्रत रखना चाहिए और यदि वह बृत्तो जन्मा हो तो उसे आतुर सन्यास लेना चाहिए। 


आपको बता दें। सांसारिक जीवन से दुखी होने की दशा में जल्दी से ग्रहण किया गया। सन्यास आतुर सन्यास कहलाता है। कहा जाता है। पुराणों के कंठ में आने पर जो प्राणी मैंने सन्यास ले लिया है, ऐसा कहता है वह मरने पर विष्णु लोक को प्राप्त होता है।


शरीर त्यागने का सबसे उचित मार्ग

 पुनः पृथ्वी पर उसका जन्म नहीं होता। इस प्रकार जिस धार्मिक पुरुष की मृत्यु से पूर्व बताए गए सभी कार्य संपादित किए जाते हैं, उसके प्राण ऊपर के क्षेत्रों से सुख पूर्वक निकलते हैं। माना जाता है शरीर त्यागने का यह सबसे उचित मार्ग है


 जिससे मृतकों मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी के साथ गरुड़ पुराण में उन मार्गों का भी वर्णन किया गया है। जहां से मनुष्य के प्राण निकलते हैं।


 मुख दोनों कान  दोनों नासिक आनंद दोनों कान यह साथ द्वार है इनमें से। किसी द्वार से पुण्यात्मा के प्राण निकलते हैं। इनमें से आत्मा किस मार्ग का चयन करती है, यह आपके कर्मों पर आधारित है।


 तो मित्र उम्मीद करते हैं। आप को मरते हुए व्यक्ति के स्वर्ग प्रतिनिधि समझ आ गई होगी। आपको हमारी आज की पोस्ट कैसी लगी। नीचे कमेंट करके जरूर बताएं। 

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तो आज के इतना ही अब हम चलते है फिर मिलेंगे नई पोस्ट के साथ तब तक हमारे blogg के अंत तक बने रहने के लिए आप सभी लोगो का दिल स्व धन्यवाद,,

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